Saturday, May 15, 2010

मां का लाडला बिगड़ गया !

तो नई उमर और ऊपर से पैसे का असर !…. बुरा मत मानियो, बिगड़ना तो था ही। वक्‍त पर संभाला नहीं, अब भुगतो। ….. सत्‍तर साल का पका अनुभव बोल रहा था, मेरे पड़ोस में। दस नंबर वाली दादी एक नए नए अमीर हुए रिश्‍तेदार के बिगड़ते बच्‍चों को लेकर एक दूसरे रिश्‍तेदार को नसीहतें भेज रही थीं… सामने टीवी पर इंडियन पैसा लीग के धतकरम की अनंत कथा चल रही थी। . दादी की नसीहत बड़ी मौजूं लगी। उन्‍होंने अपने घर की बात के बहाने आईपीएल का एक नया अन्‍यर्थ उघाड़ दिया था।
….. एक तो चढती अर्थव्‍यवस्‍था का खुमार, ऊपर से मुनाफों का अंबार, साथ में खर्चवीर नई पीढ़ी का झूमता बाजार….. कंपनियों का बिगड़ना तो तय था। बीस साल की जवान भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था उत्‍साह में उछल रही है। आईपीएल में फहराती कारपोरेट ध्‍वजपताकायें अर्थव्‍यवस्‍था के इसी नए जोश पर सवार होकर ऊपर उठी हैं। इंडिया सीमेंट, किंगफिशर, जीएमआर, या रिलायंस (सभी आईपीएल फ्रेंचाइजी मालिक) हों या आईपीएल के घोड़ों, माफ कीजिये, खिलाडि़यों पर चिपके .नोकिया, कोक, एडिडास, वोडाफोन, नाइकी जैसे ब्रांड !!!….. इन सभी की सबसे अच्‍छी कहानी पिछले बीस साल में बनी है। खूब कमाते और खूब खर्चते नए भारतीय उपभोक्‍ताओं इन्‍हें सर आंखों पर बिठाया और इनकी झोलियां मुनाफे के आशीर्वाद भर दीं। आईपीएल भारत की इन्‍हीं शानदार बाजार कथाओं का महोत्‍सव है।
कभी एक कैरी पैकर पीछे पड़ गई दुनिया को भारत ने एक दर्जन कैरी पैकर दे दिये हैं। मगर इसमें अफसोस क्‍या और हिचक कैसी ??… अरे भई, जिसने बाजार के साथ दौड़ लगाई, कमाई उसके घर आई। और जो कमायेगा, वह आगे ज्‍यादा कमाने की जुगत जरुर भिड़ायेगा। …. इस बहस में अपना खून मत जलाइये कि इन्‍होंने इतना कैसे कमाया ? बल्कि इस बात पर हैरत दिखाइये कि इन्‍हें कमाई लगाने के लिए यही तमाशा क्‍यों नजर आया ? भारत तो अभाव का बाजार है। यहां हर चीज की अनंत कमी है मांग है, दरकार है, यानी कि मुनाफा है कारोबार है। …. तो साफ सुथरी कमाई के उफनते सोते छोड़ कर कंपनियां क्‍लबबाजी के कीचड़ में क्‍यों फंस गईं ? … यहीं पर असली लोचा है। …. भारत में एक बिजली संयंत्र लगाने में कंपनी को पूर्वज याद आ जाते हैं लेकिन आईपीएल की फ्रेंचाइजी कुछ घंटों में खड़ी हो जाती है। एक सैकड़ा से भी कम ई मेल से एक पूरा आईपीएल क्‍लब निकल आता है पर एक सड़क परियोजना के लिए फाइलों का एवरेस्‍ट का खड़ा हो जाता है। …..उफ, यह सरकारी लाल फीता !…. काश यह बीच में न आया होता।
बूढ़े पंडित जी कहते थे धन की तीन गतियां (प्रयोग) होती हैं।…. दान, भोग और नाश। तुलसी की चौपाई भी सुनाते थे…. सो धन धन्‍य प्रथम गति जाकी..… खैर, इसे जाने दीजिये पुरानी बात है, नई इकोनॉमी बात करिये। मगर इस कमबख्‍त नई सोच में भी धन की तीन ही गतियां (प्रयोग) है। पहली गति… पैसा अगर उद्योग में जाए तो रोटी, रोजगार लाता है यानी ऐसी अमीरी जो सबसे बंट सके। दूसरी गति…. पूंजी बाजार के एडवेंचर स्‍पोटृर्स में गया पैसा चुटकियों में अमीरी का एक्‍साइटमेंट लाता है लेकिन ठहरिये और पलक झपकते बर्बादी के जोखिम का डिस्‍क्‍लेमर भी पढ़ लीजिये। और तीसरी गति… जब कमाई क्‍लब खरीदने से लेकर खिलाड़ी और घोड़े खरीदने में जाती है तो कभी न कभी कलंक और शर्मिंदगी की नौबत आ ही जाती है।
उदार अर्थव्‍यवस्‍था के लाड़ले हैं निजी उद्योग और कंपनियां। नया नया बाजार और शानदार कमाई। कदम बहकने का पूरा इंतजाम था। आखिर कमाई को लेकर कोई सो नहीं जाता। पैसा अपने लिए कोई न कोई राह तो बनाता ही है। (money is neither god nor devil. It is a form of energy that tends to make us more of who we already are, whether it’s greedy or loving…… Dan Millman) …..सो पैसे ने अपनी राह बना ली। उदारीकरण के राजकुमारों को फैक्‍ट्री लगानी थीं, लेकिन इन्‍होंने क्‍लब बना दिये। इन्‍हें भारतीय प्रतिभाओं को रोजगार देना था मगर इन्‍होंने क्रिकेटर खरीद लिये। क्‍लब, रेस, जुआ, समृद्ध मुल्‍कों, सरप्‍लस अर्थव्‍यवस्‍थाओं और भरे पूरे बाजारों के निवेश व्‍यसन हैं। भारत जैसी तीसरी दुनिया की कंपनियां, विकास की दूसरी दुनिया बसाये बगैर ही पहली दुनिया के व्‍यसनों में उलझ गईं हैं।
…हीर मिली न इसनू, यह रांझे उत्‍थे मर गया, गोरा चिट्टा मुखड़ा देखो काला कर गया। …. मा दा लाडला बिगड़ गया।
दादी ठीक कहती हैं… बुरा मत मानियो, बिगड़ना तो था ही। मगर अभी तो शुरुआत है। बाजार झूम रहा है। नई इकोनॉमी के यह लाड़ले अभी और कमायेंगे। यानी कि कदम बहकने के खतरे बार बार आएंगे। सरकार जी, अपने दुलारों को संभालिये। इन्‍हें कमाने का नहीं बल्कि खर्च करने का रास्‍ता बताइये। इनकी कमाई विकास की खाद बनी तो काम आएगी नहीं इनकी समृद्धि से आए दिन घोटालों की दुर्गंध आएगी।
The other meaning is
Money is like manure, you may have to spread it around or it smells …. !!

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