Saturday, December 17, 2011

पुतिन बनाम ब्‍लॉगर, लेखक पत्रकार

अदना से ब्‍लॉगरों, लेखकों, स्‍वयं सेवी संगठनों व पत्रकारों ने अकूत राजनीतिक ताकत के धनी रुस के प्रधानमंत्री ब्‍लादीमिर पुतिन की नाक में दम कर दिया है। रुस से बाहर की दुनिया अलेक्‍सी नैवेलेनी, लिओनिद पैरिफायोनोव, येवेगिना चिरियाकोवा, बोरिस अकुनिन जैसे दुनिया इन नामों से अब परिचित हो रही है जो ताजा प्रदर्शनों के नायक हैं, जबकि रुस का मरियल राजनीतिक विपक्ष एक किनारे खड़ा है। ब्‍लॉग, सोशल नेटवर्क और मोबाइल के सहारे इनके संदेश मास्‍को की सड़कों पर हजारों को खींच लाते हैं और पुतिन को इतना चिढ़ाते हैं कि इन्‍हें गिरफ्तार कर जेल में डाला जाता है। प्रदर्शनों के सिलसिले में करीब 130 लोग गिरफ्तार हुए हैं, जिनमें लोकप्रिय ब्‍लॉगर नावालेनी भी हैं।
रुस में विपक्ष बेअसर है। इसलिए विरोध की मशाल उन लोगों ने थामी ,जो सक्रिय राजनीति से बाहर हैं। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लिखने वाले ब्‍लॉगर अलेक्‍सी एंतोलोविच नेवलेनी को जब पांच दिसंबर गिरफ्तार किया गया, तब तक आंदोलन के नायक बन चुके थे।34 वर्षीय नेवलेनी का रुसी ब्‍लॉग लाइव जनरल इस आंदोलन की जान है। पुतिन के राजनीतिक दल यूनाइटेड रशिया को धोखेबाजों और चोरों की पार्टी का चर्चित खिताब नेवेलनी ने ही दिया। दस दिसंबर के प्रदर्शन को नेवेलनी ने जेल से ब्‍लॉग के जरिये संबोधित किया था। पेशे से जासूसी उपनयास लेखक बोरिस अकुनिन (असली नाम ग्रेगरी शैलोविच) भी आंदोलन का अहम नाम हैं। उनके उपनयासों पर फिल्‍में भी बनी हैं। अपने तीखे राजनीतिक बयानों के लिए चर्चित पचास वर्षीय पेशेवर टीवी पत्रकार लियोनिद पैरफायोनोव और मास्‍को के करीब खिमकी जंगल को बचाने के लिए लड़ने वाली ने येवेगेनिया चिरियाकोवा भी इस आंदोलन के सूत्रधारों में हैं। इन गैर राजनीतिक लोगों की अगुआई में बोरिस नेम्‍तसोव और ग्रेगरी येवलिंस्‍की जैसे कुछ छोटे दलों के नेता आंदोलनकारियों के साथ आए हैं।
रुस की एक बड़ा आबादी इंटरनेट से जुड़ चुकी है। इसलिए इजिप्‍ट की तर्ज सोशल नेटवर्क ही इस आंदोलन की जान हैं क्‍यों कि रुस में सरकारी चैनलों के लिए आंदोलन कोई खबर ही नहीं है। दस दिसंबर को जब मासको में प्रदर्शन के दिन सरकारी चैनल दिखा रहा था कि साइबेरिया में हिरनों की पीठ पर माइक्रोचिप लगाने की तकनीक बता रहा था। कुछ अखबार आंदोलन के समर्थन में है, अलबत्‍ता जिन पर पुतिन का गुस्‍सा बरसता है। प्रदर्शन की फोटो छापने वाले एक अखबार के प्रबंधन अपने पत्रकारों पर कार्रवाई करनी पड़ी है।
पुतिन राज में मजबूत राजनीतिक विपक्ष की जगह नहीं है। कहते हैं कि पुतिन अपने विरोधी भी खुद चुनते हैं। इसलिए मार्च के राष्‍ट्र‍पति चुनाव के पर्चे भरने की आखिरी तारीख करीब है और जो एक पर्चा भरा गया है वह अरबपति मिखाइल पोरखोव का है जिन्‍हें पुतिन का करीबी माना जाता है। रुस की संसद, ड्यूमा में वामपंथियों के पास कुछ संख्‍या बल है मगर राजनीतिक ताकत नगण्‍य है। आंदोलन फैल रहा है मगर मुख्‍य विपक्ष अभी चुप है और हालात परख रहा है। यही वजह है, लोगों का गुस्‍सा पुतिन के साथ विपक्ष के प्रति भी है।
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रुसी मध्‍यवर्ग मांगे बिंदास लोकतंत्र

रुस की यह क्रांति भूखे पेटों से नहीं निकली है, इसे आत्‍म‍ निर्भर और आधुनिक रुसी समाज नई उम्‍मीदें गढ रहीं है। रुस का नया मध्‍यवर्ग ब्‍लादीमिर पुतिन पीछे पड़ा है। आज का रुस नब्‍बे दशक जैसा गरीब और परेशान हाल नहीं है। लोगों की आय बढी है मगर अंग्रेजी भाषी,मुखर, जागरुक और सक्रिय रुसी मध्‍य वर्ग आर्थिक सुरक्षा भर से संतुष्‍ट नहीं है। इसे पश्चिम की तर्ज पर पारदर्शी, सर्वसुलभ और बिंदास लोकतंत्र चाहिए। जबकि पुतिन का राज मुट्ठी भर ताकतवर लोगों का लोकतंत्र है। इसलिए लड़ाई सड़क पर आ गई है। मस्‍कवाइट यान मास्‍को के लोग इसे दूसरी दिसंबर क्रांति कह रहे हैं। पहली 1991 दिसंबर मे हुई थी।
“चूहों,मेढकों और जानवरों की जिंदगी जीते हुए स्थिरता और आर्थिक विकास का क्‍या मतलब है। हमारे पास आवाज और वोट हैं और इन्‍हें बचाने की ताकत भी है” .....रुस के सबसे लोकप्रिय विपक्षी नेता अलेस्‍की नेवलेनी ने दस दिसंबर के प्रदर्शन के लिए जेल से यह संदेश भेजा था।... समझा जा सकता है कि मास्‍को के लोग क्‍या सोच रहे हैं और क्‍यों उन्‍हें,1999 से रुस की सत्‍ता पर काबिज पुतिन की राजनीतिक स्थिरता व विकास का तर्क समझ में नहीं आता। क्रांतियों के मामले में रुस का रिकार्ड वैसे भी अचूक है। यहां बड़े परिवर्तन रुसी समाज के गुस्‍से से हुए हैं। बीसवीं शताब्‍दी में दो बार ऐसा हुआ। फरवरी 1917 की क्रांति आम लोगों के विरोध से उपजी जो अक्‍टूबर की बोल्‍शेविक क्रांति का आधार बनी जबकि लोगों की दूसरी बगावत ने सोवियत संघ को नक्‍शे से मिटा दिया।
रुस का मध्‍य वर्ग हाल की पैदाइश है। 2000 से 2008 के बीच रुस तेल की कीमतों में बढ़ोततरी के सहारे रुस येल्‍तसिन दौर (नब्‍बे के दशक) की गरीबी से बाहर निकला और आर्थिक समृद्धि ने रुस को एक आत्‍म निर्भर और जागरुक मध्‍य वर्ग दिया। इस का समाज का उभार और पुतिन का सीमित पूंजीवादी लोकतंत्र पिछले एक दशक में रुस का सबसे बड़ा सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन है। इससे पहले तक रुस में या तेल व खनिज के कारोबारी अरबपति (ओलीगार्क) थे या फिर औसत श्रमिक। अब रुस में आबादी उन लोगों की एक अच्‍छी संख्‍या हो गई है जिनकी प्रति व्‍यक्ति आय करीब 800 डालर मासिक है और वे एक मकान खरीदने के लिए कर्ज लेने की हैसियत रखते हैं। सरकारी सुविधाओं पर निर्भर और पब्लिक हाउसिंग में रहने वाले रुसियों के लिए यह बदलाव बहुत बड़ा है।
रुस के सेंटर फॉर स्‍ट्रेजिक रिसर्च ने हाल में एक रिपोर्ट में बताया था कि रुस की कुल आबादी में अब20 फीसदी लोग मध्‍य वर्ग के हैं। यदि रुस की अर्थव्‍यव्‍स्‍था अगले आठ साल में औसत चार फीसदी की दर से भी बढी तो रुस की आबादी में 40 फीसदी लोग मध्‍य वर्ग के होंगे। इंटरनेट के नशे और आई पैड के खिलौने वाली 30 की उम्र वाली नई पीढ़ी पूरी दुनिया में घूमती है और अरब से लेकर भारत तक के जनआंदोलनों पर राय रखती है। रुस के इन नौजवानों ने ताजे चुनावों में पहली बार वोट दिया था। जब उन्‍हें पता चला कि चुनाव ही फर्जी था, तो वह चिलला उठे कि .. ‘हमने इन चोरों को वोट नहीं दिया। उन चोरों को वोट दिया था। हमें मतों की पुनर्गणना चाहिए’ (मास्‍को के हालिया प्रदर्शन का चर्चित बैनर)। रुस के राजनीतिक प्रेक्षक मानते यह नई पीढ़ी अगले कुछ वर्षों में रुस की राजनीति की किस्‍मत लिखेगी।
रुस में इन तेवरों का असर भी दिखने लगा है, रुस के पूर्व वित्‍त मंत्री अलेक्‍सी कुर्डिन ने एक नई लिबरल पार्टी बनाने का सुझाव दिया है ताकि शहरी मध्‍य वर्ग को राजनीति में जगह मिल सके, जो रुस की राजनीति में अब नई ताकत बन रहा है।
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बर्फानी रुस में विरोध का बसंत

बोलोतनाया स्‍क्‍वेयर तो बना ही था सार्वजनिक सजा देने के लिए। बीते दस दिसंबर को हजारों रूसियों जब यहां प्रधानमंत्री ब्‍लादीमिर पुतिन के खिलाफ झंडा उठाया तो इस चौक का छह सौ साल पुराना अतीत जग गया। यही चौक क्‍यों कि पूरा रुस ही अपने अतीत को नए सिरे से जी रहा है। मास्‍को के लिए यह दिसंबर, उस दिसंबर से बहुत अलग नहीं है। वह 1991 का दिसंबर ही था जब क्रेमलिन पर झंडा बदला और सोवियत रुस यानी एक महाशक्ति इति‍हास बन गई। ठीक बीस साल बाद रुस फिर तपने लगा है। देश का नवोदित मध्‍य वर्ग अब पुतिन ब्रांड मनमाने लोकतंत्र से आजादी चाहता हैं। यह लहर सिर्फ मासको में ही नहीं बल्कि सुदूर ब्‍लॉडीवोस्‍टक से लेकर कजाकस्‍तान सीमा पर कुर्गन तक चल रही है। रुसी समाज 24 दिसंबर को अब तक की सबसे बड़ी जनताकत दिखायेगा और संयोग देखिये इसके ठीक अगले दिन 25 दिसंबर को दुनिया सोवियत संघ के विघटन की बीसवीं सालगिरह मनायेगी।
रुस बला का ठंडा है, पारा शून्‍य से पांच डिग्री नीचे है मगर मास्‍को का राजनीतिक तापमान रेगिस्‍तानी इजिप्‍ट से भी ऊंचा है। दस दिसंबर को मास्‍को में50,000 रुसियों की जुटान, 1991 के बाद का दूसरा सबसे बड़ा प्रदर्शन था। मस्‍कवा नदी और वूडूटायडोनी नहर के बीच सिथत बोलोतनाया चौक के एक तरफ राष्‍ट्रपति मेदवेदेव का क्रेमलिन है और दूसरी तरफ पुतिन का व्‍हाइट हाउस। इन दोनों के बीच खड़े होकर रुसियों ने परिवर्तन की आवाज लगाई थी। 24 सितंबर को मिली जब मेदवेदेव के साथ सत्‍ता की अदली बदली में पुतिन राष्‍ट्रपति से प्रधानमंत्री बन गए और क्रेमलिन से व्‍हाइट हाउस यानी राष्‍ट्रपति वास से प्रधानमंत्री निवास पहुंच गए। यह एक राजनीतिक खेल था। रुस के संविधान के मुताबिक कोई व्‍यक्ति लगातार दो बार से अधिक राष्‍ट्रपति नहीं हो सकता। इस ‘कुर्सी बदल’ से पुतिन ने मार्च में प्रस्‍तावित चुनाव में उतरने और तीसरी बार राष्‍ट्रपति बनने का रास्‍ता साफ कर लिया। रुसियों के गुस्‍से को यह पहली चिंगारी मिली थी। इसके बाद चार दिसंबर को संसदीय चुनावों में पुतिन की ‘बूथ कब्‍जा‘ जीत हुई और लोगों का गुस्‍सा फटकर सड़क पर आ गया। ‘मासको में जुटे प्रदर्शनकारी कह रहे थे कि, रुस के शासक इतने भ्रष्‍ट हैं कि वह आपके वोट तक चुरा लेते हैं।‘
रुस के लोग कहते हैं कि बारह साल पुराने पुतिनवाद का बुखार अब उतर रहा है। क्‍यों कि पारदर्शिता और सच्‍चा लोकतंत्र पुतिन की सियासत का हिस्‍सा ही नहीं रहा। रुसी खुफिया एजेंसी केजीबी के पुराने कारिंदे ब्‍लादीमिर पुतिन समस्‍याओं से भरे येल्‍तसिन दौर के बाद सत्‍ता में आए और रुस को स्थिरता तो दी मगर लोकतंत्र गुम हो गया। पुतिन-मेदवेदेव की यूनाइटेड रशिया पार्टी का शासन एक मैनेज्‍ड डेमोक्रेसी है जिसे पूंजीपति नेताओं का एक छोटा सा समूह चलाता है। पुतिन इसे वर्टिकल ऑफ पॉवर का नाम दिया था। पुतिन के खासमखास का घेरा रुसियों की ताजी घृणा केंद्र है। पुतिन ने नौ विपक्षी दलों को चुनाव में भाग लेने तक रोक दिया। इ‍सलिए रुसी उदारवाद के नायक गोर्बाचोव को हाल में कहना पड़ा कि पुतिन राज तो कम्‍युनिस्‍ट शासन से भी बुरा है।दस दिसंबर के प्रदर्शन के बाद पुतिन को झटका लगा है। राष्‍ट्रपति मेदवेदेव चुनाव प्रक्रिया की जांच करा रहे हैं ताकि नुकसान कम हो सके।
अलबत्‍ता रुस के लोग कहते हैं कि यह गुस्‍सा नहीं बल्कि एक फर्क किस्‍म की राजनीतिक चेतना है। लोग अब वास्‍तविक लोकतंत्र, भ्रष्‍टाचार मुक्‍त प्रशासन और पारदर्शिता की मांग कर रही है। रुस में यह मानने वाले कम नहीं है कि पुतिन के पास अकूत ताकत है और अगले साल मार्च में वह पुन: जीत दर्ज कर सकते हैं लेकिन अगर रुस के विपक्षी नेता बोरिस नेम्‍तसोव की माने तो रुस को लोगों को आत्‍म सम्‍मान याद आ गया है। नेम्‍तसोव ने अपने ब्‍लॉग पर लिखा कि ‘’ दस साल की नींद के बाद मास्‍को व रुस जग गया है। ... हम जीत कर रहेंगे’’ .........
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