अदना से ब्लॉगरों, लेखकों, स्वयं सेवी संगठनों व पत्रकारों ने अकूत राजनीतिक ताकत के धनी रुस के प्रधानमंत्री ब्लादीमिर पुतिन की नाक में दम कर दिया है। रुस से बाहर की दुनिया अलेक्सी नैवेलेनी, लिओनिद पैरिफायोनोव, येवेगिना चिरियाकोवा, बोरिस अकुनिन जैसे दुनिया इन नामों से अब परिचित हो रही है जो ताजा प्रदर्शनों के नायक हैं, जबकि रुस का मरियल राजनीतिक विपक्ष एक किनारे खड़ा है। ब्लॉग, सोशल नेटवर्क और मोबाइल के सहारे इनके संदेश मास्को की सड़कों पर हजारों को खींच लाते हैं और पुतिन को इतना चिढ़ाते हैं कि इन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाला जाता है। प्रदर्शनों के सिलसिले में करीब 130 लोग गिरफ्तार हुए हैं, जिनमें लोकप्रिय ब्लॉगर नावालेनी भी हैं।
रुस में विपक्ष बेअसर है। इसलिए विरोध की मशाल उन लोगों ने थामी ,जो सक्रिय राजनीति से बाहर हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखने वाले ब्लॉगर अलेक्सी एंतोलोविच नेवलेनी को जब पांच दिसंबर गिरफ्तार किया गया, तब तक आंदोलन के नायक बन चुके थे।34 वर्षीय नेवलेनी का रुसी ब्लॉग लाइव जनरल इस आंदोलन की जान है। पुतिन के राजनीतिक दल यूनाइटेड रशिया को धोखेबाजों और चोरों की पार्टी का चर्चित खिताब नेवेलनी ने ही दिया। दस दिसंबर के प्रदर्शन को नेवेलनी ने जेल से ब्लॉग के जरिये संबोधित किया था। पेशे से जासूसी उपनयास लेखक बोरिस अकुनिन (असली नाम ग्रेगरी शैलोविच) भी आंदोलन का अहम नाम हैं। उनके उपनयासों पर फिल्में भी बनी हैं। अपने तीखे राजनीतिक बयानों के लिए चर्चित पचास वर्षीय पेशेवर टीवी पत्रकार लियोनिद पैरफायोनोव और मास्को के करीब खिमकी जंगल को बचाने के लिए लड़ने वाली ने येवेगेनिया चिरियाकोवा भी इस आंदोलन के सूत्रधारों में हैं। इन गैर राजनीतिक लोगों की अगुआई में बोरिस नेम्तसोव और ग्रेगरी येवलिंस्की जैसे कुछ छोटे दलों के नेता आंदोलनकारियों के साथ आए हैं।
रुस की एक बड़ा आबादी इंटरनेट से जुड़ चुकी है। इसलिए इजिप्ट की तर्ज सोशल नेटवर्क ही इस आंदोलन की जान हैं क्यों कि रुस में सरकारी चैनलों के लिए आंदोलन कोई खबर ही नहीं है। दस दिसंबर को जब मासको में प्रदर्शन के दिन सरकारी चैनल दिखा रहा था कि साइबेरिया में हिरनों की पीठ पर माइक्रोचिप लगाने की तकनीक बता रहा था। कुछ अखबार आंदोलन के समर्थन में है, अलबत्ता जिन पर पुतिन का गुस्सा बरसता है। प्रदर्शन की फोटो छापने वाले एक अखबार के प्रबंधन अपने पत्रकारों पर कार्रवाई करनी पड़ी है।
पुतिन राज में मजबूत राजनीतिक विपक्ष की जगह नहीं है। कहते हैं कि पुतिन अपने विरोधी भी खुद चुनते हैं। इसलिए मार्च के राष्ट्रपति चुनाव के पर्चे भरने की आखिरी तारीख करीब है और जो एक पर्चा भरा गया है वह अरबपति मिखाइल पोरखोव का है जिन्हें पुतिन का करीबी माना जाता है। रुस की संसद, ड्यूमा में वामपंथियों के पास कुछ संख्या बल है मगर राजनीतिक ताकत नगण्य है। आंदोलन फैल रहा है मगर मुख्य विपक्ष अभी चुप है और हालात परख रहा है। यही वजह है, लोगों का गुस्सा पुतिन के साथ विपक्ष के प्रति भी है।
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