Saturday, December 17, 2011

रुसी मध्‍यवर्ग मांगे बिंदास लोकतंत्र

रुस की यह क्रांति भूखे पेटों से नहीं निकली है, इसे आत्‍म‍ निर्भर और आधुनिक रुसी समाज नई उम्‍मीदें गढ रहीं है। रुस का नया मध्‍यवर्ग ब्‍लादीमिर पुतिन पीछे पड़ा है। आज का रुस नब्‍बे दशक जैसा गरीब और परेशान हाल नहीं है। लोगों की आय बढी है मगर अंग्रेजी भाषी,मुखर, जागरुक और सक्रिय रुसी मध्‍य वर्ग आर्थिक सुरक्षा भर से संतुष्‍ट नहीं है। इसे पश्चिम की तर्ज पर पारदर्शी, सर्वसुलभ और बिंदास लोकतंत्र चाहिए। जबकि पुतिन का राज मुट्ठी भर ताकतवर लोगों का लोकतंत्र है। इसलिए लड़ाई सड़क पर आ गई है। मस्‍कवाइट यान मास्‍को के लोग इसे दूसरी दिसंबर क्रांति कह रहे हैं। पहली 1991 दिसंबर मे हुई थी।
“चूहों,मेढकों और जानवरों की जिंदगी जीते हुए स्थिरता और आर्थिक विकास का क्‍या मतलब है। हमारे पास आवाज और वोट हैं और इन्‍हें बचाने की ताकत भी है” .....रुस के सबसे लोकप्रिय विपक्षी नेता अलेस्‍की नेवलेनी ने दस दिसंबर के प्रदर्शन के लिए जेल से यह संदेश भेजा था।... समझा जा सकता है कि मास्‍को के लोग क्‍या सोच रहे हैं और क्‍यों उन्‍हें,1999 से रुस की सत्‍ता पर काबिज पुतिन की राजनीतिक स्थिरता व विकास का तर्क समझ में नहीं आता। क्रांतियों के मामले में रुस का रिकार्ड वैसे भी अचूक है। यहां बड़े परिवर्तन रुसी समाज के गुस्‍से से हुए हैं। बीसवीं शताब्‍दी में दो बार ऐसा हुआ। फरवरी 1917 की क्रांति आम लोगों के विरोध से उपजी जो अक्‍टूबर की बोल्‍शेविक क्रांति का आधार बनी जबकि लोगों की दूसरी बगावत ने सोवियत संघ को नक्‍शे से मिटा दिया।
रुस का मध्‍य वर्ग हाल की पैदाइश है। 2000 से 2008 के बीच रुस तेल की कीमतों में बढ़ोततरी के सहारे रुस येल्‍तसिन दौर (नब्‍बे के दशक) की गरीबी से बाहर निकला और आर्थिक समृद्धि ने रुस को एक आत्‍म निर्भर और जागरुक मध्‍य वर्ग दिया। इस का समाज का उभार और पुतिन का सीमित पूंजीवादी लोकतंत्र पिछले एक दशक में रुस का सबसे बड़ा सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन है। इससे पहले तक रुस में या तेल व खनिज के कारोबारी अरबपति (ओलीगार्क) थे या फिर औसत श्रमिक। अब रुस में आबादी उन लोगों की एक अच्‍छी संख्‍या हो गई है जिनकी प्रति व्‍यक्ति आय करीब 800 डालर मासिक है और वे एक मकान खरीदने के लिए कर्ज लेने की हैसियत रखते हैं। सरकारी सुविधाओं पर निर्भर और पब्लिक हाउसिंग में रहने वाले रुसियों के लिए यह बदलाव बहुत बड़ा है।
रुस के सेंटर फॉर स्‍ट्रेजिक रिसर्च ने हाल में एक रिपोर्ट में बताया था कि रुस की कुल आबादी में अब20 फीसदी लोग मध्‍य वर्ग के हैं। यदि रुस की अर्थव्‍यव्‍स्‍था अगले आठ साल में औसत चार फीसदी की दर से भी बढी तो रुस की आबादी में 40 फीसदी लोग मध्‍य वर्ग के होंगे। इंटरनेट के नशे और आई पैड के खिलौने वाली 30 की उम्र वाली नई पीढ़ी पूरी दुनिया में घूमती है और अरब से लेकर भारत तक के जनआंदोलनों पर राय रखती है। रुस के इन नौजवानों ने ताजे चुनावों में पहली बार वोट दिया था। जब उन्‍हें पता चला कि चुनाव ही फर्जी था, तो वह चिलला उठे कि .. ‘हमने इन चोरों को वोट नहीं दिया। उन चोरों को वोट दिया था। हमें मतों की पुनर्गणना चाहिए’ (मास्‍को के हालिया प्रदर्शन का चर्चित बैनर)। रुस के राजनीतिक प्रेक्षक मानते यह नई पीढ़ी अगले कुछ वर्षों में रुस की राजनीति की किस्‍मत लिखेगी।
रुस में इन तेवरों का असर भी दिखने लगा है, रुस के पूर्व वित्‍त मंत्री अलेक्‍सी कुर्डिन ने एक नई लिबरल पार्टी बनाने का सुझाव दिया है ताकि शहरी मध्‍य वर्ग को राजनीति में जगह मिल सके, जो रुस की राजनीति में अब नई ताकत बन रहा है।
--------------

No comments:

Post a Comment