Saturday, December 17, 2011

बर्फानी रुस में विरोध का बसंत

बोलोतनाया स्‍क्‍वेयर तो बना ही था सार्वजनिक सजा देने के लिए। बीते दस दिसंबर को हजारों रूसियों जब यहां प्रधानमंत्री ब्‍लादीमिर पुतिन के खिलाफ झंडा उठाया तो इस चौक का छह सौ साल पुराना अतीत जग गया। यही चौक क्‍यों कि पूरा रुस ही अपने अतीत को नए सिरे से जी रहा है। मास्‍को के लिए यह दिसंबर, उस दिसंबर से बहुत अलग नहीं है। वह 1991 का दिसंबर ही था जब क्रेमलिन पर झंडा बदला और सोवियत रुस यानी एक महाशक्ति इति‍हास बन गई। ठीक बीस साल बाद रुस फिर तपने लगा है। देश का नवोदित मध्‍य वर्ग अब पुतिन ब्रांड मनमाने लोकतंत्र से आजादी चाहता हैं। यह लहर सिर्फ मासको में ही नहीं बल्कि सुदूर ब्‍लॉडीवोस्‍टक से लेकर कजाकस्‍तान सीमा पर कुर्गन तक चल रही है। रुसी समाज 24 दिसंबर को अब तक की सबसे बड़ी जनताकत दिखायेगा और संयोग देखिये इसके ठीक अगले दिन 25 दिसंबर को दुनिया सोवियत संघ के विघटन की बीसवीं सालगिरह मनायेगी।
रुस बला का ठंडा है, पारा शून्‍य से पांच डिग्री नीचे है मगर मास्‍को का राजनीतिक तापमान रेगिस्‍तानी इजिप्‍ट से भी ऊंचा है। दस दिसंबर को मास्‍को में50,000 रुसियों की जुटान, 1991 के बाद का दूसरा सबसे बड़ा प्रदर्शन था। मस्‍कवा नदी और वूडूटायडोनी नहर के बीच सिथत बोलोतनाया चौक के एक तरफ राष्‍ट्रपति मेदवेदेव का क्रेमलिन है और दूसरी तरफ पुतिन का व्‍हाइट हाउस। इन दोनों के बीच खड़े होकर रुसियों ने परिवर्तन की आवाज लगाई थी। 24 सितंबर को मिली जब मेदवेदेव के साथ सत्‍ता की अदली बदली में पुतिन राष्‍ट्रपति से प्रधानमंत्री बन गए और क्रेमलिन से व्‍हाइट हाउस यानी राष्‍ट्रपति वास से प्रधानमंत्री निवास पहुंच गए। यह एक राजनीतिक खेल था। रुस के संविधान के मुताबिक कोई व्‍यक्ति लगातार दो बार से अधिक राष्‍ट्रपति नहीं हो सकता। इस ‘कुर्सी बदल’ से पुतिन ने मार्च में प्रस्‍तावित चुनाव में उतरने और तीसरी बार राष्‍ट्रपति बनने का रास्‍ता साफ कर लिया। रुसियों के गुस्‍से को यह पहली चिंगारी मिली थी। इसके बाद चार दिसंबर को संसदीय चुनावों में पुतिन की ‘बूथ कब्‍जा‘ जीत हुई और लोगों का गुस्‍सा फटकर सड़क पर आ गया। ‘मासको में जुटे प्रदर्शनकारी कह रहे थे कि, रुस के शासक इतने भ्रष्‍ट हैं कि वह आपके वोट तक चुरा लेते हैं।‘
रुस के लोग कहते हैं कि बारह साल पुराने पुतिनवाद का बुखार अब उतर रहा है। क्‍यों कि पारदर्शिता और सच्‍चा लोकतंत्र पुतिन की सियासत का हिस्‍सा ही नहीं रहा। रुसी खुफिया एजेंसी केजीबी के पुराने कारिंदे ब्‍लादीमिर पुतिन समस्‍याओं से भरे येल्‍तसिन दौर के बाद सत्‍ता में आए और रुस को स्थिरता तो दी मगर लोकतंत्र गुम हो गया। पुतिन-मेदवेदेव की यूनाइटेड रशिया पार्टी का शासन एक मैनेज्‍ड डेमोक्रेसी है जिसे पूंजीपति नेताओं का एक छोटा सा समूह चलाता है। पुतिन इसे वर्टिकल ऑफ पॉवर का नाम दिया था। पुतिन के खासमखास का घेरा रुसियों की ताजी घृणा केंद्र है। पुतिन ने नौ विपक्षी दलों को चुनाव में भाग लेने तक रोक दिया। इ‍सलिए रुसी उदारवाद के नायक गोर्बाचोव को हाल में कहना पड़ा कि पुतिन राज तो कम्‍युनिस्‍ट शासन से भी बुरा है।दस दिसंबर के प्रदर्शन के बाद पुतिन को झटका लगा है। राष्‍ट्रपति मेदवेदेव चुनाव प्रक्रिया की जांच करा रहे हैं ताकि नुकसान कम हो सके।
अलबत्‍ता रुस के लोग कहते हैं कि यह गुस्‍सा नहीं बल्कि एक फर्क किस्‍म की राजनीतिक चेतना है। लोग अब वास्‍तविक लोकतंत्र, भ्रष्‍टाचार मुक्‍त प्रशासन और पारदर्शिता की मांग कर रही है। रुस में यह मानने वाले कम नहीं है कि पुतिन के पास अकूत ताकत है और अगले साल मार्च में वह पुन: जीत दर्ज कर सकते हैं लेकिन अगर रुस के विपक्षी नेता बोरिस नेम्‍तसोव की माने तो रुस को लोगों को आत्‍म सम्‍मान याद आ गया है। नेम्‍तसोव ने अपने ब्‍लॉग पर लिखा कि ‘’ दस साल की नींद के बाद मास्‍को व रुस जग गया है। ... हम जीत कर रहेंगे’’ .........
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